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Bhoot ki kahani

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रमेश रेलवे स्टेशन पर गार्ड की नौकरी करता था। उसकी शिफ्ट हाल ही में रात की हो गई थी और उसका ट्रांसफर एक ऐसे रेलवे स्टेशन पर कर दिया गया था जो काफी सुनसान और वीरान था। वहां से ज्यादा गाड़ियां नहीं गुजरती थी और प्लैटफॉर्म भी अक्सर सुनसान ही रहता था।

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पमिनाबहन और उनके परिवार को यह हकीकत पता चलते ही, वह लोग मकान मालिक की अतृप्त आत्मा की मुक्ति का उपाय करवा देते हैं।

और तभी मुझे याद आया कि वो जो चिट्ठी आई थी। उसमें उसका पता तो होगा। फिर मैं उसका पता पढ़ कर उसके पते के अनुसार मैं उसके घर मिलने के लिए गया।

तो मैंने देखा कि जैसे कोई सफेद साड़ी पहनकर,बाल खोलकर,लाल कलर की लाली लगाकर, जोर-जोर से हंस रही थी। मैने डर के मारे आंख नीचे कर लि.और नीचे देखने लगी। तभी कोई के चिल्लाने की आवाज आई.

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ठीक ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ और आज मैं चाहता हूँ की उस घटने को आपके साथ शेयर करूँ। बात उस समय की है जब मैं अपने दोस्त श्याम लाल की शादी मैं गया था , रात मैं शादी की सभी रस्मे पूरी हो जाने बाद मैंने अपने दोस्त श्याम लाल से अपने घर वापिस जाने की इज़ाज़त ली तो उसने मुझे घर जाने से मना किया और कहा आप रात को रुक जाइये मैं आपका सोने का इंतजाम कर देता हूँ ।

उस को बदलने में एक-दो घंटे लग जाऐंगे। हम सब लोग नीचे उतर गए. तभी उसने बोला पास में एक ढाबा है। वहां पर चाहो तो आप लोग जाकर बैठ कर आराम कर सकते हो। चाहो तो चाय पानी भी ले सकते हो। तब तक मैं गाड़ी का टायर बदल कर आ जाऊंगा। हम लोग पैदल चल कर ढाबे तक आए तो वहां एक बूढ़ा आदमी चाय बना रहा बना रहा था। हम लोग चाय पी रहे थे। कि मेरी नजर ढाबे के ऊपर गई.

बच्चों ने मिलकर उस मंत्र को पड़ना शुरू किया। अचानक से एक रोशनी घर के अंदर आई और उस भुत को साथ ले गई। भुत के घर से बाहर जातेहि घर के सारे दरवाजे और खिड़कियां अपने आप खुल गई और बच्चे दौर कर बाहर निकल आये।

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प्रसाद की लाश जोर जोर से चिल्लाने लगी। उसे कोई बचाने और वह मरना नहीं चाहता था। रमेश को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने अपनी पूरी जान लगा दी। उस स्टेशन से बाहर निकलने में और घबराता हुआ रमेश उस स्टेशन से भाग गया। कुछ दिनों बाद एक नया गार्ड स्टेशन पर ड्यूटी करने आया।

और वह मस्ती के मूड में साइकिल से नीचे उतरे और हल्दी से बने हुए घेरे के अंदर से नींबू लाल कपड़ा और मिठाई भी उठा ली । और साइकिल पर बैठकर हंसते हुए बैंक की ओर चले गए। वहां पहुंचकर काम करने में व्यस्त हो गए तभी उन्हें भूख लगी।

रमेश छलावे का नाम सुनकर बुरी तरह से कांप उठा। वह जल्दी से स्टेशन से भागने लगा। प्रसाद ने उसे समझाया कि ऐसे भागने से कोई फायदा नहीं है। बस इन सबका एक ही इलाज है कि जब भी तुम्हारा ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश करें तो तुम्हें इन पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना है और छलावे से बातें तो बिल्कुल भी नहीं अपनी आंखें मली। उसे फिर भी वह आदमी धुंधला ही दिखाई दे रहा था।

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